मन चाहता ऊंची उड़ान भरूँ
हंसों की कतारों में मिल उडूं
निकल जाऊं बादलों के पार
नभ से तकरार करुँ
बालक सी रार करुँ
गगन पर मचल मचल
मेघों की जलधार में
डुबकी लगाऊँ
जी भर नहाऊं
अम्बर से कल्पना के
अंबार समेट कर
उतार धरूँ धरा पर
गीतों में मधुरस भर
कवितायें रसवंती
गाऊँ बन कोकिल-कंठी
बेड़ियों से मुक्ति का सन्देशबालक सी रार करुँ
गगन पर मचल मचल
मेघों की जलधार में
डुबकी लगाऊँ
जी भर नहाऊं
अम्बर से कल्पना के
अंबार समेट कर
उतार धरूँ धरा पर
गीतों में मधुरस भर
कवितायें रसवंती
गाऊँ बन कोकिल-कंठी
बना लूं एक मन चाहा परिवेश
चीर दूं तमस को
फैला दूं सर्वत्र उजास
फैला दूं सर्वत्र उजास
प्रकाश में विसर्जन करुँ
अंतस का संत्रास गीतों में मल मल
धो डालूँ सारा संताप
रच दूं स्वयं का नया इतिहास धो डालूँ सारा संताप
असीर की पीर सोख
नव-युग का सूत्रपात !
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