क्या निर्गुन क्या सगुन है, कीजे काहे विचार
परदुखकारी भावना मन से देओ निकार
मानव क्यों न आज में अपना चित्त लगाय
कल की चिंता में सभी जीवन छीजत जाय
फ़कत मिले थे चार दिन एक रहा है शेष
चेत, तुझे ले जाएगा काल पकड़ के केश
गीता वेद पुराण का एकहि है ये सार
कर्तव्य हर दम करो, फल का तजो विचार
मन में दुख-सुख से परे होवे सहज प्रतीति
न हो दुख का भय ख़लिश, न हो सुख से प्रीति.
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