Saturday, January 14, 2012

प्याज - The price of onion

प्याज - The price of onion

जब कभी बाजार में नायाब हो जाती है प्याज,
हम कहाँ खाते हैं उसे , फिर हमें खाती हैं प्याज |

सुर्ख चेहरा, डब-डबाई आँखें, फैली पुतलियाँ,
इक मुज्जसम इकलाब-ए-हुस्न बन जाती है प्याज |

इनके आंसू देखकर होता है सदमा किस कदर,
हाय कैसी शरबती आँखों को रुलाती है प्याज |

हो न खाने को कुछ भी दस्तरखान पर,
ऐसे नाजुक वक्त में भूखे को बहलाती हैं प्याज |

वो चुकंदर हो या शलजम, फूलगोभी या मटर,
जान हर हांडी की, हर मौसम में, बन जाती है प्याज |

जब अचानक रोड पर छूट जाये थैली हाथ से,
कैसे-कैसे अहले-इल्म व फन को दौड़ती है प्याज |

गर घर  में न हो खाने को, तो,
मिया बीबी को लड़वाती है प्याज |

चूक जाये नजर दम भर को तो पल भर में जल जाती है प्याज,
मुह तक आते-आते कितने नाज उठ्वती है प्याज |

Sunday, January 1, 2012

जिन्दगी इक तलाश है, क्या है?


जिन्दगी इक तलाश है, क्या है?

दर्द इसका लिबास है क्या है?

फिर हवा ज़हर पी के आई क्या,
सारा आलम उदास है, क्या है?

एक सच के हजार चेहरें हैं,
अपना-अपना क़यास है, क्या है

जबकि दिल ही मुकाम है रब का,
इक जमीं फिर भी ख़ास है, क्या है

राम-ओ-रहमान की हिफ़ाजत में,
आदमी! बदहवास है, क्या है?

सुधर तो सकती है दुनियाँ, लेकिन
हाल, माज़ी का दास है, क्या है

मिटा रहा है जमाना इसे जाने कब से,
इक बला है कि प्यास है, क्या है?

गौर करता हूँ तो आती है हँसी,
ये जो सब आस पास है क्या है?

क्या निर्गुण क्या सगुन है, कीजे काहे विचार


क्या निर्गुन क्या सगुन है, कीजे काहे विचार
परदुखकारी भावना मन से देओ निकार

मानव क्यों न आज में अपना चित्त लगाय
कल की चिंता में सभी जीवन छीजत जाय

फ़कत मिले थे चार दिन एक रहा है शेष
चेत, तुझे ले जाएगा काल पकड़ के केश

गीता वेद पुराण का एकहि है ये सार
कर्तव्य हर दम करो, फल का तजो विचार

मन में दुख-सुख से परे होवे सहज प्रतीति
न हो दुख का भय ख़लिश, न हो सुख से प्रीति.