Thursday, March 31, 2011

तुम्हारी और मेरी आवाज़


तुम्हारी आवाज़,
आज तुमने मुझसे पूछा कि मुझे तुम्हारी आवाज़ कैसी लगती है,
तो सुनो,
तुम्हारी आवाज़ मुझे दुनिया की सबसे मीठी आवाज़ लगती है,
जब जब तुम बोलती हो,
खाना बन गया है,
तुम आराम करो,
लाओ मैं तुम्हारे पैर दबा दूं,
मुझे लगता है की मेरे कानों में शहद घोल रही हो तुम्हारी आवाज़.

जब जब तुम बोलती हो,
तुम्हारे कपड़े प्रेस हो गए हैं,
मैंने तुम्हारा कमरा ठीक कर दिया है,
ये लो अपना टिफिन,
मुझे लगता है, क्या तुमसे मीठी हो सकती है कोई भी आवाज़,

पर न जाने क्यों मुझे कड़वी लगने लगती है तुम्हारी आवाज़,
जब जब तुम कहती हो,
बर्तन माँज दो,
कपड़े ले आओ ड्रायर से,
बच्चे का डायपर बदल दो,
मैं परहेज़ करता हूँ ऐसी आवाजें सुनने से.

जब जब तुम आदेश देती हो,
टेबल पोंछ दो,
चलो मेरे साथ बाज़ार,
भर दो सारे बिल,
मेरे कान पकने लगते हैं,

कोशिश करना कि तुम्हारी आवाज़ की मिठास सदा उसकी कड़वाहट पर भारी रहे,
ताकि मुझे सदा मीठी लगती रहे,
तुम्हारी आवाज़,

वैसे तुमको मेरी आवाज़ कैसी लगती है?
----------------------------------
मेरी आवाज़,
मेरे एक ज़रा से प्रश्न के उत्तर में,
तुमने अपनी पूरी मानसिकता उडेल कर रख दी,
फिर भी मुझे नहीं बताया,
कि मेरी आवाज़ तुम्हें लगती कैसी है,

मैं बताती हूँ,
कि मुझे तुम्हारी आवाज़ कैसी लगती है,
सुनो,

मुझे तुम्हारी आवाज़ बहुत मीठी लगती थी,
जब शादी से पहले,
तुम किया करते थे उच्च आदर्शों की बातें,
कहा करते थे की स्त्री और पुरुष में फर्क नहीं करते हो,
मेरी हर ग़लती को कोई बात नहीं कह कर टाल दिया करते थे,
मुझे लगता था,
ये आवाज़ तो मैं अपने जीवन भर सुन सकती हूँ,

मुझे आज भी कभी कभी अच्छी लगती है तुम्हारी आवाज़,
जब सुबह सुबह तुम मुझे जगाते हुए कहते हो, चाय पी लो,
जब बिना कहे मुन्ने को कर देते हो तैयार,
मेरे खाना खाते समय जब तुम मेरे पास बैठ जाते हो बिना किसी मान मनौवल के,
तब तब मेरे कानों में मिसरी घोल जाती है तुम्हारी आवाज़,

लेकिन,
न जाने क्यों,
मुझे ज्यादातर कड़वी लगने लगी है,

जब जब तुम कहते हो,
मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता,
ये क्यों खरीदना है,
मेरे पास तुमसे बातचीत करने का समय नहीं है,
मुझे दुखी कर जाती है तुम्हारी आवाज़,

मुझे लगती है ज़हरीली,
जब तुम बनाते हो बहाने,
मुझको देते हो ताने,
मेरे मायके को कुछ बोलते हो जाने अनजाने,
मुझे लगता है,
मैं और नहीं सुन सकती,

क्या तुम कोशिश करने को तैयार हो,
ताकि मुझे तुम्हारी आवाज़ हमेशा मीठी लगे.

SATYAM SRIVASTAVA
LIC
Mobile - 0091-9236542531
E-mail : satyamsrig@gmail.com
H.No - CT-10
Barabanki - UP
PIN - 225001

वह समाज मर जाता है जिसकी कविता डरती है


सुनते हैं कवि अपने युग का सच्चा प्रतिनिधि होता,

युग के हंसने पर कवि हंसता युग रोता कवि रोता,

कविता कवि के भाव जगत का चित्र हुआ करती है,
सच्चे कवि की कविता सच्चा मित्र हुआ करती है,

कविता वैभव के विलास में संयम सिखलाती है,
घोर निराशा में भी कविता आशा बन जाती है,

युग की सुप्त शिराओं में कविता शोणित भरती है,
वह समाज मर जाता है जिसकी कविता डरती है,

हृदय सुहाते गीत सुनाना कवि का धर्म नहीं है,
शासक को भी दिशा दिखाए कवि का कर्म यही है,

अपने घर में रहने वाला जब आतंक मचाए,
घर का मालिक ही घर में जब शरणार्थी बन जाए,

बहन बेटियों अबलाओं की लाज ना जब बच पाए,
मज़हब का उन्माद भाईचारे में आग लगाए,

जब सच को सच कहने का साहस समाप्त हो जाए,
दूभर हो जाए जीना विष पीकर मरना भाए,

तब कविता नूतन युग का निर्माण किया करती है,
निर्बल को बल प्राणहीन को त्राण दिया करती है,

कविता जन जन को विवेक की तुला दिया करती है,
कविता मन मन के भेदों को भुला दिया करती है,

'दिनकर' की है चाह कि हम सब भेदभाव को भूलें,
मात भारती की गरिमा भी उच्च शिखर को छू ले।

कविः डा वागीश दिनकर

Saturday, March 5, 2011

एक बेनाम महबूब के नाम



चाहता हूँ कि तेरा रूप मेरी चाह में हो
तेरी हर साँस मेरी साँस की पनाह में हो

मेरे महबूब तेरा ख़ुद का ज़िस्म न हो
मेरे एहसास की मूरत कोई तिलिस्म न हो

ढूँढता फिरता हूँ हर सिम्त भुला के ख़ुद को
अपनी पोशीदा रिहाइश का पता दे मुझको

तुझसे मिलने की क़सम मैंने नहीं तोड़ी है
दिल ने उम्मीद बहरहाल नहीं छोड़ी है

तुझको पाने का अभी मुझको इख़्तियार नहीं
पर मेरा इश्क़ कोई रेत की दीवार नहीं

बावफ़ा अब भी हूँ पर मेरी कहानी है अलग
मेरी आँखें हैं अलग आँख का पानी है अलग

अब न मज़बूरी-ओ-दूरी का गिला कर मुझसे
यूँ नहीं है तो तसव्वुर में मिला कर मुझसे

मेरे महबूब तू इक रोज़ इधर आयेगा
हाँ मगर वक़्त का दरिया तो गुज़र जायेगा

तब न शाख़ों पे कहीं गुल नही पत्ते होंगे
जा-ब-जा बिखरे हुये बर्फ़ के छत्ते होंगे

एक मनहूस सफ़ेदी यहाँ फैली होगी
चाँदनी अपनी ही परछाई से मैली होगी

तब भी ज़ज़्बात पे हालात का पहरा होगा
वक़्त इक फीकी हँसी पर कहीं ठहरा होगा

पस्त-कदमों से तू चलता हुआ जब आयेगा
सर्द-तूफ़ान के झोकों से सिहर जायेगा

मेरे अल्फ़ाज़ में तब भी यही नरमी होगी
और मेरे कोट में अहसास की गरमी होगी

Thursday, March 3, 2011

कोशिश करने वालों की


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
- हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) (few people think that it is from सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला")

मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे



अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
- Gulzar