था यहाँ बहुत एकान्त बन्धु
नीरव रजनी सा शान्त बन्धु
दुःख की बदली सा क्लान्त बन्धु
नौका-विहार दिग्भ्रान्त बन्धु
तुम ले आये जलती मशाल
उर्जस्वित स्वर देदीप्य भाल
हे! कविता के भूधर विशाल
गर्जित था तुममें महाकाल
भाषा को दे नव-संस्कार
वर्जित-वंचित को दे प्रसार
कविता-नवीन का समाहार
करने में जीवन दिया वार
विस्मित है जग लख, महाप्राण!
अप्रतिहत प्रतिभा के प्रमाण
नर-पुंगव तुमने सहे बाण
निष्कवच और बिन सिरस्त्राण
अब श्रेय लूटने को अनेक
दादुर मण्डलियाँ रहीं टेक
कैसा था साहित्यिक विवेक
छिटके थे करके एक-एक
झेले थे कितने दाँव बन्धु
दृढ़ रहे तुम्हारे पाँव बन्धु
है, यह मुर्दों का गाँव बन्धु
बाँधो न नाव इस ठाँव बन्धु
नीरव रजनी सा शान्त बन्धु
दुःख की बदली सा क्लान्त बन्धु
नौका-विहार दिग्भ्रान्त बन्धु
तुम ले आये जलती मशाल
उर्जस्वित स्वर देदीप्य भाल
हे! कविता के भूधर विशाल
गर्जित था तुममें महाकाल
भाषा को दे नव-संस्कार
वर्जित-वंचित को दे प्रसार
कविता-नवीन का समाहार
करने में जीवन दिया वार
विस्मित है जग लख, महाप्राण!
अप्रतिहत प्रतिभा के प्रमाण
नर-पुंगव तुमने सहे बाण
निष्कवच और बिन सिरस्त्राण
अब श्रेय लूटने को अनेक
दादुर मण्डलियाँ रहीं टेक
कैसा था साहित्यिक विवेक
छिटके थे करके एक-एक
झेले थे कितने दाँव बन्धु
दृढ़ रहे तुम्हारे पाँव बन्धु
है, यह मुर्दों का गाँव बन्धु
बाँधो न नाव इस ठाँव बन्धु
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