Wednesday, January 19, 2011

बेचैनी का मौर



बेचैनी का मौर समय के
माथे पर।
सूरज, रात खरीद रहा
बाज़ारों में।
कंधा शामिल होता है,
हत्यारों में।
'थाली में विष होगा'
यह फेरों का डर।
बारूदी सुरंग का
खतरा है मन में।
'समय' खड़ा है कवच
ओढ़कर आँगन में।
उबल रहा है बड़नावल
सबके भीतर।
लकवाग्रस्त उमर
लेटी है बिस्तर पर।
बेटा, बहु, चिकित्सक,
सोचें, तेज ज़हर।
घातों में दामाद, बेटियों
वाला, घऱ।

No comments:

Post a Comment