मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।
मै झिझक उठा ,हुआ बैचैन सा ,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूंठ देने लोग कपडे की लगे ,
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी ।
जब किसी ढब से निकल गया तिनका ,
तब 'समझ ' ने यों मुझे ताने दिए ,
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए
ढब- तरीका
कवि
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
नीचे के प्लेयर से यह कविता सुनिए-
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।
मै झिझक उठा ,हुआ बैचैन सा ,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूंठ देने लोग कपडे की लगे ,
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी ।
जब किसी ढब से निकल गया तिनका ,
तब 'समझ ' ने यों मुझे ताने दिए ,
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए
ढब- तरीका
कवि
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
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